Thursday, February 6, 2025

सरकार द्वारा दी जा रही राहत पर एक अर्थशास्त्री की सटीक व्याख्या !


राहत पैकेज को ऐसे समझें।


एक बार 10 मित्र जिनमें कुछ फटेहाल, कुछ ठीक ठाक और कुछ सम्पन्न लग रहे थे, एक ढाबे में खाना खाने गए।


बिल आया 100 रूपये,  10 रूपये की थाली थी।


मालिक ने तय किया कि बिल की भागीदारी देश की कर प्रणाली के अनुरूप ही होगी।


इस प्रकार 


पहले 4 बेहद गरीब (बेचारे)  फ्री

5 वाँ गरीब 1 रूपये

6 ठा कम गरीब  3 रूपये

7 वाँ निम्न मध्यम वर्ग  7 रूपये

8 वाँ मध्यम वर्ग  12 रूपये

9 वाँ उच्च वर्ग, 18 रूपये

10 वाँ अति उच्च वर्ग,  59 रूपये

 

दसों मित्रों को ये व्यवस्था अच्छी लगी और वो उसी ढाबे में खाने लगे।


कुछ समय तक रोज़ इन दसों को आते देख कर ढाबे का मालिक बोला - "आप लोग मेरे इतने अच्छे ग्राहक हैं सो मैं आप लोगों को टोटल बिल में 20  रूपये की छूट दे रहा हूँ ।"


अब समस्या ये कि इस छूट का लाभ कैसे दिया जाए सबको? पहले चार तो यूँ भी मुफ़्त में ही खा रहे थे।


एक तरीका ये था कि 20 रूपये बाकी 6 में बराबर बाँट दें तो भी बात नहीं बन पा रही थी, अगर ऐसा करते तो ऐसी स्थिति में पहले 4 के साथ 5 वां भी फ्री हो जाता और 5 वां ₹2.33 और 6ठा ₹0.67 घर भी ले जा सकते थे मुफ्त खाने के अलावा। पर ढाबा-मालिक ने ज़्यादा न्याय संगत तरीका खोजा ।


नयी व्यवस्था में अब पहले 5 मुफ़्त खाने लगे।

6 ठा 3 की जगह 2 रूपये  देने लगा... 33%लाभ।

7 वां 7 की जगह 5 रूपये देने लगा. 28%लाभ।

8 वां 12 की जगह 9 रूपये  देने लगा.  25% लाभ

9 वां 18 की जगह 14 रूपये देने लगा.  22%लाभ। 

और


10 वां 59 की जगह49 रूपये देने लगा.. सिर्फ  16%लाभ।


बाहर आकर 6 ठा बोला, मुझे तो सिर्फ 1 रु का लाभ मिला जबकि वो पूंजीपति 10 रूपये का लाभ ले गया।


5 वां जो आज मुफ़्त में खा के आया था, बोला वो मुझसे 10 गुना ज़्यादा लाभ ले गया।


7 वां बोला , मुझे सिर्फ 2 रूपये का लाभ और ये उद्योगपति 10 रूपये ले गया।


पहले 4 बोले, जो कि मुफ्त में खा रहे थे 


अबे तुमको तो फिर भी कुछ मिला हम गरीबों को तो इस छूट का कोई लाभ ही नहीं मिला ।


ये सरकार सिर्फ इस पूंजीपति, उद्योगपति व सम्पन्न व्यक्ति के लिए काम  करती है , मारो, पीटो, फूंक दो. इस को और सबने मिल के दसवें को पीट दिया।


यह सम्पन्न व्यक्ति (10 वां) पिटपिटा के इलाज करवाने विदेश चला गया।


अगले दिन वो ना ही उस ढाबे में खाना खाने आया  और न ही लौटकर भारत आया।


और जो 9 थे उनके पास सिर्फ 40 रु थे जबकि बिल 72 रु का था ।


मित्रों अगर हम लोग उन बेचारे सम्पन्न लोगों को यूँ ही पीटेंगे तो हो सकता है वो किसी और ढाबे पर खाना खाने लगे यानी दूसरे देश में चला जाए) जहां उसे कर व राहत पैकेज प्रणाली हमसे बेहतर मिल जाए।


ये है कहानी हमारे देश के कर प्रणाली, बजट व राहत पैकेज की


मुफ़्त राशन, मुफ़्त शिक्षा, मुफ़्त बिजली पानी मुफ़्त सायकल, मुफ़्त लैपटॉप, मुफ़्त इलाज, मुफ़्त घर.


सरकार मुफ़्तख़ोरी की आदत लगा रही हैं जनता को .


देश ऐसे नहीं चलते, दुनिया में कुछ भी मुफ़्त नहीं मिलता किसी न किसी को तो क़ीमत चुकानी होगी ।


उद्योगपतियों, पूंजीपतियों व करदाताओं को चाहे जितनी गाली दीजिये पर सच्चाई यही है कि इन्हीं करदाताओं के योगदान से देश चल रहा है ।


सोचिए, समझिए,

No comments: