म्यूचुअल फंड के जरिए सिर्फ इक्विटी या शेयर बाजार में ही नहीं, बल्कि डेट, गोल्ड और कमोडिटी में भी पैसे लगाए जा सकते हैं। इसमें शेयर बाजार की ज्यादा समझ नहीं है या आप इसमें लगाए गए अपने पैसे की निगरानी के लिए वक्त नहीं निकाल सकते, तो म्यूचुअल फंड निश्चित तौर पर आपके लिए बेहतर माध्यम है.
· इक्विटी म्यूचुअल फंड
· डेट म्यूचुअल फंड
· बैलेंस फंड,
· ग्रोथ फंड
· इंडेक्स फंड,
· मनी मार्केट फंड,
· गिल्ड
फंड,
· लिक्विड फंड,
· हाइब्रिड म्यूचुअल फंड
· सॉल्यूशन ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड
जाने म्यूचुअल फंड चुनें
कैसे? क्योंकि बाजार में दर्जनों
कंपनियों की हजारों म्यूचुअल फंड स्कीमें मौजूद हैं.
1.
म्यूचुअल फंड चुनाव का पहला कदम
·
सबसे
पहले तो आपको ये तय करना है कि आपके निवेश का मकसद क्या है,
·
आप
कितना निवेश कर सकते हैं और कितने समय के लिए इसमें बने रह सकते हैं.
·
सही
म्यूचुअल फंड का चुनाव इस पर निर्भर करता है कि आपकी निवेश अवधि क्या है. अगर आपको
साल-दो साल के लिए निवेश करना है, तो उसके लिए अलग म्यूचुअल फंड होंगे. अगर आपको 5, 7, 10
साल या इससे भी ज्यादा समय के लिए निवेश करना है, तो
उसके लिए दूसरे म्यूचुअल फंड होंगे. जैसे - अगर आप छोटी अवधि के लिए निवेश कर रहे हैं, तो
आप डेट फंड या लिक्विड फंड चुन सकते हैं. वहीं अगर आप लंबी अवधि के लिए निवेश कर
रहे हैं, तो फिर आपके लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड सही
रहेंगे.
2.
जोखिम लेने की क्षमता तय करना दूसरा कदम है
आपने निवेश की अवधि तय कर लेने के बाद आवश्यक है
कि आपको तय
करना है कि आप इस निवेश के लिए कितना जोखिम ले
सकते हैं. याद रखें कि ज्यादा रिटर्न के लिए ज्यादा जोखिम लेना पड़ता है, लेकिन
निवेश में सिर्फ रिटर्न महत्वपूर्ण नहीं होता, कैपिटल
प्रोटेक्शन यानी आपकी लगाई गई पूंजी की सुरक्षा भी मायने रखती है.
उदाहरण - मान लीजिए कि आपने लंबी अवधि के लिए इक्विटी
म्यूचुअल फंड में निवेश करना चाहते है,
लेकिन आप इस बात का जोखिम नहीं ले सकते
कि आपके निवेश की वैल्यू में गिरावट आ जाए, फिर आपको वैसे फंड चुनने होंगे जिनमें
रिटर्न और जोखिम संतुलित रहे. जैसे प्योर इक्विटी फंड की बजाय बैलेंस्ड फंड में
निवेश करें, जो इक्विटी और डेट दोनों में एक निश्चित अनुपात
में पैसे लगाते हैं.
3.
म्यूचुअल फंड का पिछला प्रदर्शन
इस बात की गारंटी नहीं होती कि अगर
किसी फंड ने अब तक अच्छा परफॉर्म किया है तो आगे भी उसका परफॉर्मेंस वैसा ही
रहेगा. लेकिन अलग-अलग फंड्स के पिछले प्रदर्शन से आप एक तुलनात्मक अध्ययन कर सकते
हैं कि किस फंड के परफॉर्मेंस में एक कंसिस्टेंसी है, और
उसके प्रदर्शन में उतार-चढ़ाव बाजार और इकोनॉमी से बहुत अलग तो नहीं हैं. साथ ही
आपको अलग-अलग फंड से अब तक मिले औसत रिटर्न का अंदाजा भी लग जाएगा.
4.
रेटिंग एजेंसियों की इन फंड्स को दी गई रेटिंग देखे
आप अलग-अलग रेटिंग एजेंसियों की इन फंड्स को दी गई रेटिंग भी देखे। हालांकि
इन रेटिंग में एकरूपता नहीं होती, फिर भी आपको एक आइडिया जरूर मिल जाता है कि किन
पैरामीटर्स पर किसी फंड को आंका गया है.
·
खर्चों पर नजर डालें - किसी भी म्यूचुअल फंड को चुनते वक्त ये जरूर
देखें कि उसमें निवेश से जुड़े खर्च क्या हैं, क्योंकि
आपका नेट रिटर्न इन खर्चों की वजह से कम हो सकता है. जिन खर्चों को आपको देखना
होगा, वो हैं एंट्री और एक्जिट लोड, एसेट मैनेजमेंट चार्ज, एक्सपेंस
रेश्यो. वैसे तो म्युचुअल फंड स्कीमों में एंट्री लोड नहीं लगता, लेकिन
एक तय सीमा के पहले स्कीम से पैसे निकालने पर कई कंपनियां एक्जिट लोड चार्ज करती
हैं, जो 3% तक हो सकता है. इसलिए जहां एक्जिट लोड कम हो
या नहीं हो, उन स्कीमों में निवेश करें।
·
इसी
तरह, एसेट मैनेजमेंट चार्ज और एक्सपेंस रेश्यो भी जरूर देखें क्योंकि ये
सारे खर्च आपके फायदे को कम कर देते हैं. सामान्यतया 1.5% तक
का एक्सपेंस रेश्यो किसी म्यूचुअल फंड के लिए मुनासिब माना जाता है, लेकिन
इससे ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो वाले फंड में निवेश से बचें.
· फंड हाउस और मैनेजर का रिकॉर्ड भी देखें - जिस म्यूचुअल फंड स्कीम में आप पैसा लगाने जा
रहे हैं, उस स्कीम को लाने वाली कंपनी और उसकी देखरेख
करने वाले मैनेजर का रिकार्ड चेक करना भी मायने रखता है. देखें कि फंड हाउस कितने
समय से काम कर रहा है, उसकी दूसरी स्कीमों का परफॉर्मेंस कैसा रहा है
और कंपनी की साख बाजार में कैसी है. साथ ही ये भी पता लगाएं कि आपकी स्कीम के फंड
मैनेजर का अनुभव कितना है और वो इस स्कीम को कितने समय से मैनेज कर रहा है.
· एक
अनुभवी और काबिल फंड मैनेजर बाजार के उतार-चढ़ाव से गुजर चुका होता है और वो आपके
पैसे को बेहतर तरीके से लगाने के तरीका जानता है.
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